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कविता

नहीं रहेंगे रास्ते

हरे प्रकाश उपाध्याय


नहीं
इतने से नहीं होगा
अभी और पड़ेंगे छाती पर हथौड़े
और दिल फेंकेगा फच फच खून...

अभी और आग लगेगी
और रास्ते जो हैं
नहीं रहेंगे
अभी घिरकर जलना है

अभी तो भूमिका बाँध रहे हैं कई कसाई
छुरे पजा रहे हैं
और धार जाँच रहे हैं

थोड़ा ठहरो
देखोगे जब कतरेंगे कलेजे
आग में भूनेंगे
तश्तरी में सजाकर बाजार में बेचेंगे
अभी ठहरो

तुम जो सोच रहे हो
तुम्हारी बारी नहीं आयेगी
आयेगी
आयेगी वे समूची आदिम नस्ल के विरोधी हैं

वे साँस लेते देखेंगे लकड़ी को
तो उसे भी 'रेप' देंगे
वे मद में चूर हैं
वे छोड़ेंगे नहीं पानी को
चाहे वह आक्सीजन में हो या हाइड्रोजन में
मिट्टी में हो या हवा में

धीरे धीरे वे पैठ रहे हैं हमारे बीच
हमें प्रलोभन देते हुए
हमें गुड़ खिला रहे हैं
पर अभी, अभी वे नाथेंगे हमें
और हमने तो बता दिये हैं उन्हें
सारे ठिकाने अपने
यहाँ दिल है, यहाँ दिमाग
यहाँ हम रहते हैं यहाँ हमारी जान

 


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